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जैनतत्त्वादर्श . राजा के शरीर में ब्रह्मरंध्र के द्वारा प्रवेश करे गये । तव तो रांजा जी उठा और वहां पर आये हुए नगर निवासियों को वड़ा आनन्द और आश्चर्य हुश्रा, तथा राजा के शरीर को शीतादिक उपचार -से स्वस्थ कर के बड़े उत्सव से नगर में ले आये और राजा मस नहीं था-यह बात सर्वत्र प्रसिद्ध कर दी। तव लोगों ने फिर से बडे आडम्बर पूर्वक राजाशंकरस्वामी को राजसिहासन पर बिठलाया । पश्चात् राजसिंहासन से उठकर राजा-शंकरस्वामी प्रथम चडी राणी के घर में गये। तहां जाकर उस राणी से काम क्रीडा - करने लगे * तव तो शंकरस्वामी की कुशलता से तिस के आलिंगन करने से उत्पन्न हुआ जो सुख संभोग, ता करिके शङ्करस्वामी ने उस राणी के मुख के साथ तो अपना मुख जोड़ा, और अपनी छाती उस राणी के दोनों कुत्रों-स्तनों के ऊपर रक्खी। तैसे ही उस राणी की नाभि से अपनी नाभि जोड़ी और * तदालिङ्गनसञ्जातसुखभुग्यतिकौशलात् । - मुखं मुखेन संयोज्य वक्षो वक्षोजयोस्तथा ॥ नाभ्या नाभिञ्च संकोच्य संकोच्य पढा पदम् । एवमेकाझंवत् कुन्चा गाढालिङ्गनतत्परः ॥ . कक्षास्थानेषु हस्ताभ्या स्मृगन् प्रौढ इवावभौ . • तदोलापविशेषज्ञा ज्येष्ठपत्नी ,कथादिवित् ॥ देहमानं हि भर्तुः स्यात् न जीवोऽयं हि सर्ववित् 1 .
[शं:-वि०प्र०
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