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जैनतत्त्वादर्श
परम ब्रह्म है, यह अनुमान से कैसे सिद्ध किया जा सकता है ? इस कहने करके जो उपनिषद् में एक ब्रह्मके कहने वाली “सर्व वै खल्विदं ब्रह्म" इस श्रुति का निराकरण होगया । क्योंकि इस श्रुतिवचन को परमात्मा से भिन्न पदार्थ मानने से द्वैतापत्ति हो जावेगी । जेकर कहोगे कि अनादि अविद्यासे ऐसा प्रतीत होता है तब तो पूर्वोक्त दूषणोंका प्रसंग होगा । तिस वास्ते अद्वैत की सिद्धि
या पुत्र की शोभावत् है । इस कारण से अद्वैतमत युक्तिविकल है । तब जगत् से प्रथम एकहो ईश्वर था, उसी ने यह जगत् रचा है, ऐसा कहना मिथ्या सिद्ध हुआ । यह ईश्वर सम्बन्धी प्रथम पक्ष समाप्त हुआ ।
खण्डन
अब ईश्वर सम्बन्धी दूसरे पक्ष का विचार किया जाता है । इस पक्ष में एक ईश्वर अरु दूसरा सापेक्ष ईश्वर- सामग्री, ए दो पदार्थ अनादि हैं । तिन कर्तृत्व का दोनों में से १. पृथिवी, २. जल, ३. अग्नि, ४. वायु, इन चारों के परमाणु, ५. आकाश, ६. काल, ७. दिशा, ८. आत्मा, मन, ए नव वस्तु सामग्री है तथा ये नित्य और अनादि हैं - किसीके बनाए हुए नहीं । सो ईश्वर इस पूर्वोक्त सामग्री से सृष्टि को रचता है । अब इस मत के सिद्धान्त का कुछ विस्तार से निरूपण करके उसकी परीक्षा करते हैं ।
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