________________
१२६
जैनतत्त्वादर्श उत्तरपक्षः-यह अनुमान तुमारा सम्यक् नहीं है, क्योंकि इसी अनुमान में धर्मी, हेतु, और दृष्टांत, ये तीनों जुदे २ नहीं रहे किन्तु इन तीनों के प्रतिभासांतःप्रविष्ट होने से, ये साध्यरूपही हुये । तब तो धर्मी, हेतु, दृष्टांतइन तीनोंके न होनेसे अर्थात् एक रूप होनेसे अनुमान ही नहीं बन सकता । जेकर कहोगे कि, धर्मी, हेतु, और दृष्टांत, ए तीनों प्रतिभांसातःप्रविष्ट नहीं हैं । तब तो प्रतिभासमान हेतु इन्हीं तीनोंके साथ व्यभिचारी हो जायगा । जेकर कहोगे अनादि अविद्या रूप वासना के बल से हेतु दृष्टांत प्रतिभास के तरे बाहिर की पदार्थ का निश्चय करते हैं [ जैसे प्रतिपाद्य, प्रतिपादक, सभा, सभापतिजन को तरे] तिस कारणसे अनुमान हो सकता है । अरु जव सकल अनादि अविद्याका विलास दूर हो जावेंगा, तब प्रतिभासांतः प्रविष्ट ही प्रतिभास होगा । विवाद भी न रहेगा । प्रतिपाद्य प्रतिपादक, साध्य साधक भाव भी नहीं रहेगा । तब तो अनुमान करनेका भी कुछ फल नहीं, क्योंकि देशकाल-परिच्छेद शून्य, सर्वत्र अनुस्यूत सकल अवस्था में सर्वत्र विद्यमान, प्रतिभास स्वरूप परम ब्रह्म अनुमान का प्रयोग करना कुछ भी प्रयोजन नहीं रखता ।
तथा यह जो अनादि अविद्या है सो प्रतिभासान्त:प्रविष्ट है अथवा प्रतिभासके बाहिर है ? जेकर प्रतिभासांत:प्रविष्ट है, तब तो विद्याही हो गई तो फिर वह असतूरूप