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द्वितीय परिच्छेद है । सरसवाणी तो ब्रह्म की शक्ति हो कर फिर स्त्री बन कर मंडनमिश्र से विषय सेवन करती रही अरु सर्वज्ञ भी वन बैठी । अरु शंकर स्वामी परस्त्री से विषय सेवन करके उस से कछुक काम शास्त्र सीख कर सर्वज्ञ बन बैठे, क्या यह गधे खुरकनी न हुई तो और क्या हुआ ? तथा उक्त वृत्तान्त से यह भी मालूम पड़ता है कि जव शङ्कर स्वामी, अपना स्थूल शरीर छोड़ कर राजा के शरीर में गये, तब सब ब्रह्मविद्या भूल गये । जेकर न भूले होते तो उन के शिष्य काहे को "तत्वमसि" का उपदेश करते ? और भी सुनिये । जव शंकर स्वामी स्थूल शरीर के बदल जाने पर ब्रह्मविद्या को भूल गये, तव तो ब्रह्मविद्या का सम्बन्ध न तो लिंग शरीर के साथ रहा, न आत्मा के साथ, किन्तु स्थूल शरीर ही के साथ सम्बन्ध रहा । इससे यह सिद्ध हुआ कि जब वेदांती मर जाते हैं, तब उन का ज्ञान भी नष्ट हो जाता है, क्योंकि उक्त कथनानुसार ज्ञान का सम्बन्ध केवल स्थूल शरीर ही के साथ रहा श्रात्मा के साथ नहीं । अरु जो तुमने कहा था कि शंकरस्वामी के कथन किये अद्वैत मत को कौन खण्डन कर सकता है ? सो हे
भव्य ! जय शंकर स्वामी का चरित्र ही असमंजस है, तो - फिर उन के कहे हुए मत को किस प्रकार युक्तियुक्त समझा जा सकता है ?
पूर्वपक्षः-"पुरुप एवेद" इत्यादि श्रुतियों से अद्वैत ही सिद्ध होता है।