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जैनतत्त्वादर्श क्योंकि सुख थोड़ा और दुःख बहुत ऐसे भी सर्व जीव देखने में नहीं आते, परन्तु सुख बहुत अरु दुःख अल्प, ऐसे बहुत जीव देखने में आते हैं।
अथ षष्ठ पक्षोत्तरः-छटा पक्ष भी समीचीन नहीं क्योंकि सुख बहुत अरु दुःख थोड़ा ऐसे भी सर्व जीव देखने में नहीं आते परन्तु दुःख बहुत अरु सुख अल्प, ऐसे बहुत जीव देखने में आते हैं। इन हेतुओं से ईश्वर जीवों को किसी व्यवस्था वाला नहीं रच सकता, तो फिर ईश्वर दृष्टि का कर्ता क्योंकर सिद्ध हो सकता है। कभी नहीं हो सकता। तथा जब ईश्वर ने सृष्टि नहीं रची थी तब ईश्वर को क्या दुःख था? अरु जब सृष्टि रची तब क्या सुख हुआ?
पूर्वपक्षः-ईश्वर तो सदा ही परम सुखी है। क्या ईश्वर में कुछ न्यूनता है कि उस न्यूनता के पूर्ण करने को सृष्टि रचे, वो तो जगत में अपनी ईश्वरता प्रगट करने को सृष्टि रचता है।
उत्तरपक्षः-जब ईश्वर ने सृष्टि नहीं रची थी तब तो ईश्वर की ईश्वरता प्रगट नहीं थी, अरु जब सृष्टि रची तब ईश्वरता प्रगट भई, तो प्रथम जब ईश्वर की ईश्वरता प्रगट नहीं भई थी तब तो ईश्वर बड़ा उदास, असंपूर्णमनोरथ और ईश्वरता को प्रगट करने में विह्वल था, इस हेतु से अवश्य '. ईश्वर को दुःख होना चाहिये । फिर जब ईश्वर सृष्टि से
पहिले ऐसा दुःखी था तो खाली क्यों बैठ रहा था? इस सृष्टि