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जैनतत्त्वादर्श फिर हमारा रचने वाला ईश्वर परम शत्रु हुआ कि नहीं ? बिना प्रयोजन रंक जीवों से सामग्री द्वारा पाप करा के क्यों उन को नरक में डाले ? सामग्री द्वारा प्रथम पाप कराना और पीछे नरकपात का दंड देना-इस तुमारे कहने से ईश्वर से अधिक अन्यायी कोई नहीं, क्योंकि उस ने जीव को प्रथम तो रचा, फिर नरक में डाला । बस तुमने ईश्वर को ये हीअन्यायी, असर्वज्ञ, निर्दयी, अज्ञानी, वृथा मेहनती रूप कलंक दीने, इस वास्ते निर्मल जीव ईश्वर ने नहीं रचे । ए प्रथम पक्षोत्तर। ___ अथ दूसरा पक्षोत्तर-जेकर कहोगे कि ईश्वर ने पुण्य वाले ही जीव रचे हैं तो यह भी तुमारा कहना मिथ्या है। क्योंकि जब पुण्य वाले ही सर्व जीव थे तो गर्भ में ही अंधे, लंगड़े, लूले, बहिरे होना, भूण्डा रूप, नीच वा निर्धन के कुल में उत्पन्न होना, जाव जीव दुःखी रहना, खाने पीने को पूरा न मिलना, महा कष्टकारक मेहनत करके पेट भरना यह पुण्य के उदय से नहीं हो सकते । अरु बिना ही पुण्य के करे जीवों को ईश्वर ने पुण्य क्यों लगा दिया ? जे कर विना हो करे जीवों को ईश्वर ने पुण्य लगा दिया तो फिर बिना ही धर्म करे जीवों को स्वर्ग तथा मोक्ष क्यों नहीं पहुंचा देता ? शास्त्रोपदेश कराय के, भूखों मराय के, तृष्णा छुडाय के, राग द्वेष मिटाय के, घर बार छुडाय के, साधु वनाय के, टुकडे मंगाय के, दया, दम, दान, सत्यवचन, चोरी का त्याग, स्त्री