________________
जैन तत्त्वादर्श
१०८
है ? - जे कर कहोगे भिन्न है, तो फिर सत्य है, वा असत्य है ? जे कर कहोगे सत्य है, तो फिर तिस अनुमान की तरें प्रपंच भी सत्य ही क्यों नहीं । जे कर कहोगे असत्य स्वरूप है, तो फिर क्या शून्य है ? वा अन्यथाख्यात है ? वा अनिर्वचनीय है ? प्रथम के दोनों पक्ष तो कदापि साध्य के साधक नहीं हैं, मनुष्य के शृङ्ग की तरें, तथा सीप में रूपे की तरें । अरु तीसरा जो अनिर्वचनीय पक्ष है तिसका तो संभव ही है नहीं; तब यह अपने साध्य को कैसे साधेगा ?
पूर्वपक्ष:- हमारा जो अनुमान है, सो व्यवहार सत्य है । इस कारण से असत्य नहीं । फिर अपने साध्य को वह क्यों कर नहीं साध सकता ? अपितु साध सकता है ।
उत्तरपक्षः - हम तुम से पूछते हैं कि जो यह व्यवहार सत्य है, तिस का क्या स्वरूप है ? 'व्यवहरतीति व्यवहारःऐसे जो व्युत्पत्ति करिये तब तो ज्ञान का ही नाम व्यवहार ठहरता है अरु ज्ञान से जो सत्य है, सो परमार्थिक ही है । इस पक्ष में सतख्याति रूप प्रपंच सिद्ध हुआ । जब प्रपंच सत् सिद्ध हुआ, तब तो एक ही परम ब्रह्म सद्रूप अद्वैत तत्त्व किसी तरह भी सिद्ध नहीं हो सकता । जेकर कहोगे कि व्यवहार नाम शब्द का है, उस करके जो सत्य हो वह व्यवहार सत्य है । तो फिर हम पूछते हैं, जो व्यवहार नाम शब्द का है, तो वह शब्द स्वरूप से सत्य है ? वा असत्य है ? जे कर कहोगे कि शब्द सत्स्वरूप है तो शब्द की तरे प्रपंच भी सत्