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जैनतत्त्वादर्श जो करे, सो कुदेव है। क्योंकि जो ऐसा रागी अरु द्वेषी है वो मोक्ष के तांई कमी नहीं हो सकता । वो तो भूत, प्रेत, पिशाचादिकों की तरे क्रीडाप्रिय देवता मात्र है । ऐसा देव अपने सेवकों को कैसे मोक्ष दे सकता है ? प्रापही यदि वो रागी, द्वेषी, कर्मपरतंत्र है, तो सेवकों का क्या कार्य सार सकता है ? इस हेतु से वो भी कुदेव है।
पुनः कुदेव के लक्षण लिखते हैं जो नाद, नाटक, हास्य, संगीत, इनके रस में मग्न है, बाजा बजाता है, आप नृत्य करता है, तथा औरों को नचाता है, पाप हंसता अरु कूदता है, विषय बढ़ाने वाले रागों को गाता है, वाद्य अरु संगीत लोलुप है, इत्यादि मोह कर्म के वश से संसार की चेष्टा करता है, तथा जिसका स्वभाव अस्थिर हो रहा है । सो जो आपही ऐसा है तो फिर सेवकों को शांति पद कैसे प्राप्त करा सकता है। जैसे एरंड वृक्ष कल्पवृक्ष की तरें किसी की इच्छा नहीं पूरी कर सकता । यदि किसी मूढ पुरुष ने एरंड को कल्पवृक्ष मान लिया तो क्या वो कल्पवृक्ष का काम दे सकता है ? ऐसे ही किसी मिथ्यादृष्टि पुरुष ने जो कुदेव को परमेश्वर • मान लिया तो क्या वो परमेश्वर हो सकता है ? कभी नहीं ।
इस वास्ते प्रथम परिच्छेद में जो लक्षण परमेश्वर के लिखे · हैं तिनही लक्षणों वाला परमेश्वर देव है । शेष सर्व कुदेव हैं।
प्रश्न:-हमने तो ऐसा सुन रक्खा है कि जैनी ईश्वर को नहीं मानते । उनका जो मत है, सो अनीश्वरीय है। परन्तु