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द्वितीय परिच्छेद
प्रश्न: - क्या ईश्वर भी कई एक तरें के हैं, जो हमसे ऐसा पूछते हो ?
उत्तरः- क्या तुम नहीं जानते हो कि दो तरेके ईश्वर अन्य मतावलंबियों ने माने हैं ? एक तो जगदुत्पत्ति निरपेक्ष ईश्वर से पहिले केवल एक ही ईश्वर था । जगत् कर्तृत्वखण्डन का उपादानादिक कोई भी कारण वा दुसरी वस्तु नहीं थी - एक ही शुद्ध वुद्ध सच्चि - दानन्दादि स्वरूप युक्त परमेश्वर था । कई एक जीवों को तो ऐसा ईश्वर, जगत् वा सर्व वस्तु का रचने वाला अभिमत है । और दूसरों ने तो जीव, परमाणु, आकाश, काल, दिशादि सामग्री वाला - एनावता एक तो उक्त विशेषण संयुक्त ईश्वर और दूसरी सामग्री जिससे जगत् रचा जावे, ए दोनों वस्तु अनादि हैं- एतावता एक तो ईश्वर और दूसरी जगत् उत्पन्न करने की सामग्री, ए दोनों किसी ने बनाये नहींऐसा माना है । तुम को इन दोनों मतों में से कौनसा मत सम्मत है ?
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आप
पूर्वपक्ष:- हमको तो प्रथममत सम्मत है, क्योंकि वेदादि शास्त्रों में ऐसा लिखा है.
* एतस्मादात्मन आकाशः सम्भूतः । आका
* उस सत्य, ज्ञान और श्रानन्दस्वरूप आत्मा (ब्रह्म) से आकाश उत्पन्न हुआ, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल, जल से