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प्रथम परिच्छेद
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इस प्रकार यह अवसर्पिणी में जो तीर्थङ्कर हो गये हैं, तिनों के नाम अरु किस हेतु से यह नाम रक्खे गये सो प्रकरण समाप्त हुवा |
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यह जो चौबीस तीर्थङ्कर हैं। इनमें से बावीस तो इक्ष्वाकु कुल में उत्पन्न हुवे हैं, एतावता ऋषभदेव तीर्थङ्करो के वंश की सन्तान में से हैं । इदवाकु कुल ऋषभदेव तथा वर्ण ही से प्रसिद्ध है, यह आगे चलकर लिखेंगे । एक तो बीसवें मुनिसुव्रत स्वामी तथा दूसरे बावीसवै श्री अरिष्टनेमि भगवान्, ये दोनों तीर्थङ्कर हरिवंश में उत्पन्न हुए हैं । तथा इन चौबीसों तीर्थङ्करों में छठा पद्मप्रभ और बारहवां वासुपूज्य ये दोनों तीर्थङ्कर रक्तवर्ण शरीर वाले हुए हैं। आठवां चन्द्रप्रभ और नवमा सुविधिनाथ- पुष्पदन्त ए दोनों तीर्थकर श्वेत वर्ण- स्फटिक के समान उज्वल शरीर वाले हुए हैं। तथा उन्नीसवां मल्लिनाथ और तेईसवां पार्श्वनाथ, ए दोनों तीर्थङ्कर हरितवर्ण शरीर वाले हुए हैं । तथा बीसवां मुनि सुव्रत स्वामी और यावीसवां अरिष्टनेमि भगवान् ए दोनों तीर्थङ्कर श्यामवर्ण - अलसी के फूल सदृश रङ्ग वाले शरीर के धारक हुए है। और शेष सोलां तीर्थङ्कर सुवर्ण वर्ण शरीर वाले हुए हैं।
* उपयुक्त तीर्थङ्कर के नामो के सामान्य और विशेष अर्थ अभि० चि० तथा आवश्यकभाष्य की श्री हरिभद्रसूरिकृत टीकागत लेख के अनुसार किये गये है ।