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द्वितीय परिच्छेद
धनुष, चक्र, त्रिशूलादि जिसके पास होवे तथा अतसूत्रजपमाला, आदि शब्द से कमंडल प्रमुख होवे । फिर कैसा वो देव होवे ? राग द्वेपादि दूषणों का जिममें चिन्ह होवे । स्त्री को जो पास रक्खेगा वो जरूर कामी और स्त्री से भोग करने वाला होगा । इस से अधिक रागी होने का दूसरा कौनसा चिन्ह है ? इसी काम राग के वश होकर कुदेवों ने स्वस्त्री, परस्त्री, वेट, माता, बहिन, अरु पुत्र की वधू प्रमुख से अनेक कामक्रीडा कुचेष्टा करी है ।
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जो पुरुष मात्र होकर परस्त्री गमन करता है उसको आज कल के मतावलंबियों में से कोई भी अच्छा नहीं कहता | तो फिर परमेश्वर होकर जो परस्त्री से काम कुचेष्टा करे, तो उसके कुदेव होने में कोई भी वुद्धिमान् शंका नहीं कर सकता। जो अपनी स्त्री से काम सेवन करता है और पर स्त्री का त्यागी है उसको भी पर स्त्री का त्यागी, धर्मी गृहस्थ तो लोक कह सकते है, परन्तु उसको मुनि वा ऋषि वा ईश्वर कभी नहीं कहेंगे क्योंकि जो कामाग्नि के कुण्ड में प्रज्वलित हो रहा है, उसमें कभी ईश्वरता नहीं हो सकती । इस हेतु से जो रागरूप चिन्ह करी संयुक्त है, सो कुदेव है । पुनः जो द्वेष के चिन्ह करी संयुक्त है वो भी कुदेव है । द्वेष के चिन्ह शस्त्रादि का धारण करना क्योंकि जो शस्त्र, धनुष, चक्र, त्रिशूल प्रमुख रक्खेगा उसने अवश्य ही किसी वैरी को मारना है, नहीं तो शस्त्र रखने से क्या प्रयोजन है ? प्रत: