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जैनतत्त्वादर्श इस यन्त्र के अनुसार एक एक तीर्थकर के साथ बावन बावन बोलका सम्बन्ध जान लेना। इनमें से मातादिक कितनेक द्वार जो प्रथम न्यारे लिखे गये हैं, सो व्युत्पत्ति के कारण से लिखे हैं।
इन चौवीस तीर्थंकरों में से नववे, दशवें, ग्यारवें, बारवे, तेरवें, चौदवें अरु पदरवें, ए सात तीर्थंकरों के निर्वाण हुए पीछे इन सातों का शासन-जो द्वादशांगवाणी रूप शास्त्र अरु साधु तथा साध्वी, श्रावक, और श्राविका, ए चतुर्विध श्री संघरूप तीर्थ-लो कितनेक काल तक प्रवृत्त होकर पीछे से व्यवच्छेद हो गया । तब तो भारत वर्ष में जैन मत का नाम भी न रहा था। तब ही से अनेक मत मतांतर और कुशास्त्रों की प्रायः प्रवृत्ति भयी सो अब ताई होतो ही चलो जाती है। बहुत से लोगों ने स्त्रकपोलकल्पित शास्त्र बना करके पूर्व मुनि व ऋषि वा ईश्वर प्रणीत प्रसिद्ध कर दिए हैं। ऐसे तीनसौ त्रेसठ मत प्रवृत्त हुए हैं। अरु चारों आर्य वेद तो व्यवच्छेद हो गये अरु नवीन वेद बना लिये। उन नवीनों को भी कई वार लोगों ने नवी २ रचना से बनाकर उलट पुलट कर दिया । जो कुछ बन बनाके शेष रहे उनमें भी अनेक तरें के भाष्य, टीका, आदि रच कर अर्थो की गड़ बड़ कर दीनी, सो अब ताई करते ही चले जाते हैं । ए सर्व स्वरूप "जहां वेदों की उत्पत्ति लिखेंगे तहां स्पष्ट करेंगे। वेद जो नाम है सो तो बहुत प्राचीन काल से है, अरु जिन पुस्तकों