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प्रथम परिच्छेद
२७ के गर्भ में स्थित हुवे भगवन्त की माता को सुगन्ध वाले फूलों की माला की शय्या पर सोने का दोहद उत्पन्न भया, सो देवता ने पूरण किया, इस कारण से मल्लि ।। __२०-"मन्यते जगतस्त्रिकालावस्थामिति मुनिः, शोभनानि व्रतान्यस्येति सुव्रतः, मुनिश्चासौ सुव्रतश्च मुनिसुव्रतः"-माने जो जगत को तीनों ही काल में सो मुनि, भले हैं व्रत जिसके सो सुव्रत, ए दोनों पद इकट्ठे करने से मुनिसुव्रत यह नाम हुवा । तथा "गर्भस्थे जननी मुनिवत् सुव्रता जातेति मुनिसुव्रत."-भगवन्त के गर्भ में स्थित हुये माता मुनि की तरह भले व्रतवाली होती भई, इस हेतु से मुनिसुव्रत। ___ २१-"परीपहोपसर्गादिनामनातू-[ * नमेस्तुतिविकल्पेनोपान्त्यस्काराभावपने ] नमिः"-परीपह तथा उपसर्ग आदि को नमावने से नमि । यद्वा "गर्भस्थे भगवति परचक्रपैरपि प्रणतिः कृतेति नमिः"-भगवन्त के गर्भ में स्थित होने पर वैरी राजाओं ने भी नमस्कार करी, इस कारण से नम।
२२-"धर्मचक्रस्य नेमिवन्नेमिः"-धर्मचक्र की धारावत् जो हो सो नेमि । तथा "गभगए तस्स मायाए रिहरयणामश्रो महइमहालो नेमी उप्पयमाणो सुमिणे दिहोत्ति तेण से रिहणेमित्ति णाम कयं"-[श्रा०नि०, हारि०टी० गा०
* ऋमितमिस्तम्भरिच नमेस्तु वा [सि० है०, उणादि सू० ६१३]