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जैनतत्त्वादर्श
, २. "जितशत्रुः-जिताः शवोऽनेन"-जीते हैं शत्रु जिस ने सो जितशत्रु, ३. “जितारि:-जिता अरयोऽनेन"-जीते हैं वैरी जिसने सो जितारि, ४. “संवरः-संवृणोतीन्द्रियाणि" वश में करी हैं इन्द्रियां जिसने सो संवर, ५. "मेघः-सकलसत्वसंतापहरणान्मेघ इव"-सकल जीवों का संताप हरने से मेघ की तरें मेघ, ६. “धरः-धरति धात्रीम" धारण करे जो पृथ्वी को सो धर, ७. "प्रतिष्ठःप्रतिष्ठति धर्मकार्य"-धर्म के कार्य में जो स्थित रहे सो प्रतिष्ठ, ८ "महासेननरेश्वरः-महती पूज्या सेनाऽस्येतिमहासेनः स चासौ नरेश्वरश्च"-मोटी-पूजने योग्य है सेना जिसकी सो महालेन, इसका नरेश्वर के साथ समास होने पर महासेननरेश्वर, ६. "सुग्रीवः-शोभना ग्रीवाऽस्य"भली है ग्रोवा-गर्दन जिसकी सो सुग्रीव, १०.-दृढ़रथःहढोरथोऽस्य"-बलवान है रथ जिसका सो दृढरथ, ११. "विष्णुः-वेवेष्टि बलैः पृथिवीम्”–वेष्टित किया है पृथिवी को सेना करी जिसने सो विष्णु, १२. "वसुपूज्यराटअन्य राजभिर्वसुभिर्धनैः पूज्यत इति वसुपूज्यः स चासौराट् च"-दूसरे राजाओं ने धन करी जिसे पूज्या सो वसुपूज्य, इसका राज के साथ समास होने पर वसुपूज्यराट्, १३. "कृतवर्मा-कृतं वर्माऽनेन"-करा है सनाह-कवच जिसने सो कृतवर्मा, १४. "सिह सेनः-सिहवत् पराक्रमवती सेनास्य" सिंह की तरे है पराक्रम वाली सेना जिसकी सो