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जैनतत्त्वादर्श मरुदेवी भी नाम है, २. "विजया-विजयते"-जो विजयवतो है सो विजया, ३. “सेना-सह इनेन जितारिस्वामिना वर्तते"-जितारि स्वामो के साथ जो वर्ते-रहे सो सेना, ४. "सिद्धार्था-सिद्धा अर्था अस्याः"-सिद्ध हुये हैं अर्थ-प्रयोजन जिसके लो सिद्धार्था, ५ "मङ्गला-मङ्गलहेतुत्वातू"-मङ्गल का हेतु होने से मङ्गला, ६. "सुसोमा-शोभना सीमा मर्यादास्याः"-भली है सुसीमा-मर्यादा जिस की सो सुसीमा, ७. 'पृथ्वी-स्थेना पृथ्वीव"-स्थिर है जो पृथ्वी की तरे सो पृथ्वी, ८. “लक्ष्मणा-लक्ष्मी शोभास्त्यस्याः"-- लक्ष्मी-शोभा है जिसकी सो लक्ष्मणा, ६. “रामा-धर्मकृत्येषु रमते"-धर्मकृत्य में जो रमे सो रामा, १०. "नंदा-नंदति सुपात्रेण"-सुपात्र में देने से जो वृद्धि को प्राप्त होवे-प्रफुल्लित होवे सो नंदा, ११. "विष्णुः-वेवेष्टि गुणैर्जगत्" गुणों करी जो जगत् में व्याप्त है सो विष्णु, १२ "जया-जयति सतीत्वेन"-सती पणे करी जो उत्कृष्ट है सो जया, १३. "श्यामा श्याम वर्णत्वात्"-श्याम वर्ण होने से श्यामा, १४ “सुयशा शोभनं यशोऽस्याः"-भला है यश जिसका सो सुयशा, १५. "सुव्रता-शोभनं व्रतमस्याः सुव्रता पतिव्रतात्वात्"-पतिव्रता होने से भला है व्रत जिसका सो सुव्रता, १६. "अचिरा-न चिरयति धर्मकार्येषु"नहीं चिर-देर करती है जो धर्म कार्य में सो अचिरा, १७. "श्रीः-श्रीरिव" लक्ष्मी की तरे प्रभा है जिसकी सो श्री,