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प्रेरणा थी विद्धान् अने स्वतंत्र एवो जीव पण अशुभ कर्मों ग्रहण करे छे. विवेचन. अहियां ग्रन्थकार श्री गहन वस्तु ने पण दृष्टांत द्वारा स्पष्ट करतां समझावे छे के जेम मोदक नो स्वाद मीठो अने रस वालो लागे छे अने खाँल नोस्वादफीको अने नीरस लागे छे एम जाणवा छतां पण धनवान मनुष्य खांल ने पण भवितव्यतादि नी प्रेरणा थी खोय छे. तेम विद्वान् अने स्वतंत्र आत्मा पण भवितव्यतादि नी प्रेरणा थी अशुभ कर्मों पण ग्रहण करे छे. मूलम्अनन्य मार्गश्च तथैव कश्चित् स्यानं लिजेष्टं प्रयियासुराशु । शुभाशुमानस्थानभरान्विजानन्, विलंधतेस्वीयपदाप्तिनोदात ५ गाथार्थ-पोताना इष्ट स्थले जल्दी जवानी इच्छा वालो. स्व स्थान नी प्राप्ति नी प्रेरणा थी शुभाशुभ स्थानो ने जाणतो छतो पण मनुष्य बीजो जवानो मार्ग न होवाथी शुभ मार्ग नु उल्लंघन करी कुत्सित मार्गे जाय छे . विवेचन- दरेक माणसनी इच्छा शुभ एटले सुन्दर, सरल, उपद्रव रहित, भय रहित अने जल्दी पहोची शकाय एवा मार्गे जवानी होय छे, ए स्वाभाविक छे. परन्तु तेवा प्रकार नो मार्ग न मले तो जाणतो छतो पण अशुभ एटले खराब, वांको, उपद्रवो वाला, भव वाला अने लांबा मार्गे पण इच्छित स्थाने जवानी