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तात्कालिक पण फल आपे छे. सामान्य रीते दरेक पुण्य फल आवता जन्म मां मले छे, परन्तु कोई वार एवा प्रकार नुं पुण्य बंधाई जाय छे के ते ते भव मां पण फल आपे छे. तेने उग्र पुण्य कहे छे. एटले उग्र पुण्य नुं फल ते भव मां साक्षात् मले छे. जेमके आ संसार मां लोक मां कोई ने कलंक लाग्यं होय त्यारे तेनी दिव्य द्वारा शुद्धि करवामां आवे छे. एमां जो ते सत्यवादी होय तो शुद्ध थई जाय छे. दाखला तरीके सीताजी ऊपर कलंक आव्यं अने तेमनी दिव्य द्वारा शुद्धि करवामां आवी अने तेस्रो शियल ना प्रभावे शुद्ध थयां माटे उग्र पुण्य फल साक्षात् श्रा भव मां परण फंले छे.
मूलम्
शुद्धाय सिद्धाय च साधवे तथा ऽण्वपि प्रदत्तं सकलार्थसिद्धये । स्यादैहिकामुष्मिक सर्व सौख्य- निबन्धनं बन्धनहृद् भवस्य । १५ । गाथार्थ: कोई शुद्ध सिद्ध पुरुष अने साधु ने थोडुं पण आपलं सकल पदार्थ नी सिद्धि माटे थाय छे, तथा श्रा लोक ने परलोक मां सुख करनार अने संसार नो नाश करनार थाय छे.
विवेचन: - सुपात्र मां प्रापेल थोडुं पण दान लाभदायक थाय छे जेमके गाय ने खवरावेल घास पण दूध