Book Title: Jain Tattva Sar Sangraha Satik
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Ranjanvijayji Jain Pustakalay

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Page 401
________________ ( ३६० ) अस्य ग्रन्थस्य गुर्जरानुवादे मतिमंदेन जिनागम विरूद्ध मया किञ्चिदपि लिखितं तन्मृषा दुष्कृतं मम. अयं ग्रन्थ सर्व जीवानाम् मोक्ष मार्ग को भवतु, कल्याणं भवतु । गाथार्थ - श्री कलिकाल कल्पतरु मनोवांछित पूरक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान नी परम कृपा थी अचिन्त्य चिन्तामणि श्री नवपदजी नी आराधना ना मंगलमय प्रसंगे श्री महाराष्ट्र देशे सोलापुर नगरे श्री प्रथम तीर्थपति श्री आदीश्वर भगवंत ना सानिध्ये प०पू० कच्छ वागड़ देशोद्धारक चमत्कारी महापुरुष स्व० दादा श्रीमद् जितविजयजी महाराजा ना शिष्य रत्न प०पू०प्रशांत मूर्ति स्व० श्रीमद् हीर विजयजी महाराजा ना शिष्य रत्न प०पू० भद्र स्वभावी स्व० श्रीमद् बुद्धिविजयजी महाराजा ना गुरु भ्राता प०पू० समयज्ञ गणनायक स्व० पंन्यास प्रवर श्रीमत् तिलक विजयजी गणिवर ना विनेय श्री रत्नशेखर सूरिए वि०सं० २०३१ ना आसो सुद १५ ना सोमवारे कुमार योगे विजय मुहूर्ते आ नथ नो गुजराती अनुवाद कर्यो छे. आ ग्रंथ नो गुजराती अनुवाद करतां मतिमंदता ना कारणे जिनागम विरुद्ध माराथी कई पण लखायुं होय तो तेनो मिच्छामि दुक्कडं दऊ छ अने प्रा नथ सर्व जीवो ने मोक्ष मार्ग दर्शक बनो एवी भावना साथे विरमुं छं. - कल्याणं भवतु -

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