Book Title: Jain Tattva Sar Sangraha Satik
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Ranjanvijayji Jain Pustakalay

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Page 399
________________ ( ३८९) गाथार्थ:-ए प्रकारे जीभ ना फल ने इच्छता एवा पूर्वे कहेल वंश मां थयेल सूरचंद्र नामना में पोताना मन नी स्थिरता रूप संपत्ति माटे या ग्रंथ सारी रीते बनाव्यो छे. विवेचन-सुगम. एवंयथाशेमुषि जैनतत्व-सासे, मयाऽस्मारि मनःप्रसत्त्ये। उत्सूत्रमासूत्रितमात्र क्रिश्चिद्,यत्तद्विशोध्यंसुविशुद्धधीभिः ।२२ गाथार्थ:--ए प्रमाणे पोतानी बुद्धि अनुसार में जैन तत्त्व सार नामनो ग्रंथ मारा मन नी प्रसन्नता माटे याद कर्यो छे. एमां सूत्र विरुद्ध कइं पण रचायुं होय ते अति निर्मल बुद्धि वालाप्रोए शुद्ध करवो जोइये. विवेचनः-सुगम. वर्षे नन्दतुरङ्गचन्दिरकलामानेऽश्वयुक्परिणमा, ज्ञे योगे विजयेऽहमेतममलं पूर्ण व्यधामादरात् । ग्रन्थं वाचकसूरचन्द्रविबुधः प्रश्नोत्तरालङ कृतम्, साहाय्याद्वरपद्मवल्लभगणेरर्हत्प्रसादश्रियै ॥२३॥ गाथार्थ:-विक्रम संवत् १६७६ ना पासो सुद पूनम, बुधवार, विजय योग मांः वाचक सूरचंद्र पंडित एवा में

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