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थयो. ते कल्प वृक्ष मां श्री जिनभद्र सूरिवर अद्वितीय स्कंध समान हता. ते स्कंध ने विषे मोटी शाला तुल्य पाठको मां मुख्य श्री अने क्षमा ना स्थान रूप श्री मेरू सुन्दर गुरु हता. तेमां प्रति शाखा समान नैयायिको मां श्रेष्ठ एवा हर्ष पाठक अने प्रिय पाठक थया. या संसार मां श्रीया चरित्र वाचक अने उदय वाचक नामना बे आचार्यो सुगंध वाला वृक्ष नी मंजरी तुल्य थया. नूतन पत्र थी उत्पन्न थयेल केसरो ने विषे गीतार्थ अने परम संवेगवाला श्री वोर कलश नामना श्रेष्ठ गुरु फल समान शोभवा लाग्या. तेमां बीज समान असे विद्यमान छीये. तेमां सूरचन्द्र नामनो हुं छं. तेमां बीजो गुरु भाई चतुर एवो पद्मवल्लभ गरिण छे. अमारा थी हीर सार विगेरे अंकुरा समान छे. अंकुरा समान हीर सार विगेरे पण ज्ञान वडे चतुर एवा सुन्दर शिष्यो रूप फल ना समूह वडे फल युक्त थाओ.
विवेचनः– सुगम.
मूलम् :
तेनासुको वाचकसूरचन्द्र-नाम्ना रसज्ञाफलमित्यमिच्छता । ग्रन्थोऽभितोऽग्रन्थिमयास्वकीया-न्यदीय चेतः स्थिरतोपसम्पदे ।