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( ३६३ ) वस्तु नथी. जेथी कर्म थी युक्त अने ज्ञानादि मय प्रा आत्मा शरीर मा रहेलो छे. मूलम्प्रात्मानमात्मैषयदाऽभिवेत्ति,मोहक्षयादात्मनिचात्मशक्त्या । तदेवतस्योदितमात्मविद्धि-निंचदृष्टिश्चररांतथाप्तः ॥१९॥ नाथार्थ:-जे काले मोह ना क्षय थी अने प्रात्मा नी शक्ति थी आत्माज आत्मा मां आत्म स्वरूप ने सारी रीते जाणे छे. ते समये आत्म ज्ञानी एवा आत्म पुरुषोए तेनेज ज्ञान, दर्शन अने चारित्र कहेलुं छे. विवेचन:-आत्मा ने सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान अने सम्यक् चारित्र क्यारे होय छे ते बतावतां कहे छ के ज्यारे आ आत्मा मोह ना क्षय थी अने आत्म शक्ति थी एटले आत्म ज्ञान ना बल थी.आत्मा ना स्वरूप ने सारी रीते जाणे छे त्यारेज आत्मज्ञानी अने परम विश्वास पात्र जेमनुं. वचन छे एवा अने विशिष्ट अरिहंत भगवंतो एज ते आत्मा ने सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन अने सम्यक् चारित्र कहेलुं छे. चूलम् :आत्मावबोधेननिवार्यमात्मा-ज्ञानोद्भवंदुःखमनन्तकालिकम् । अनेककष्टाचरणैरपोदं,विनाऽत्मबोधादनिवार्यमस्तियत् ।२०।