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मूलम्श्रतस्तु वैयात्यमिदं मदीय- मुदीक्ष्य दक्षैर्न हसो विधेयः । बालोऽपिपृष्टोनिगदेत्प्रमाणं, वार्धेर्भुजाभ्याम् स्वधियानक वा । ७ नाथार्थः - कारण थी मारी प्रा धिठ्ठाई जोई ने डाह्या पुरुषोए उपहास न करवो कारण के शुं बालक पण पूछवाथी पोतानी बुद्धि वडे बे भुजाओ पहोली करी समुद्र ना प्रमाण ने नथी बतावतो ? अर्थात् बतावे छे.
विवेचन :- ग्राटलो गहन विषय जैन तत्त्वनो होवा छतां तमोए ए प्रवृत्ति केम करी ? तेना जवाब मां जगावे छे के खरेखर आ तत्त्वोनो विचार दर्शाववो ते मारी बुद्धि ना बहार नो विषय होवा छतां पण धिठ्ठाई करीने आ काम कर्यु, तो विद्वानोए मारो उपहास न करवो. शुभ काम मां थोडो पण प्रयत्न दरेके पोतानी शक्ति अनुसार करवो जोइये. तेथीज प्रा प्रयत्न में शक्ति बहार नी वात होवा छतां कर्यो छे. शुं बालक पोतानी बे भुजाओ पहोली करीने पोतानी बुद्धि वडे समुद्र नुं प्रमाण पूछवाथी नथी बतावतो ? अर्थात् बतावेज छे.
मूलम्
यद्वेदमेवाल्पधियां समस्तु, शास्त्रं यतः शासनमस्त्यथास्मात् । यदुक्तिप्रत्युक्तिनिर्यु क्तियुक्तं, तद्वाभियुक्ताः प्ररणयन्तिशास्त्रम् ॥८