Book Title: Jain Tattva Sar Sangraha Satik
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Ranjanvijayji Jain Pustakalay

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Page 394
________________ ( ३८३ ) नुं जोडारण छे, एम पंडित पुरुषो कहे छे. तेम मारा आ कथन नी पण वर्ण परंपरा होवाथी तेने पण शास्त्र कहेवाय छे. मूलम्: ग्रानन्दनायास्तिक नास्तिकानां, ममोद्यमोऽयं सफलोऽस्तु सर्वः । श्राद्यषुचाऽऽस्तिक्यगुरण प्रसाररणादन्त्येषुनास्तिक्यगुरणापसारणात् गाथार्थ:-प्रास्तिक ने नास्तिक लोकोना आनंद माटे आ मारो सर्व प्रयत्न सफल छे. आस्तिको ने विषे श्रास्तिक्य गुण नो विस्तार करवाथी अने नास्तिको ने विषे नास्तिक्य गुण दूर करवाथी मारो उद्यम सफल छे. विवेचन :- मारो ग्रंथ बनाववानो सर्व प्रयत्न सफल छे, कारण के आ ग्रंथ बनाववा थी आस्तिको ने पण आनंद थयो अने नास्तिको ने पण आनंद थयो. प्र ग्रंथ बनाववा थी बन्ने ने आनंद केम थयो ? अने प्रयत्न सफल केम थयो ? तेना जवाब मां जणाववानुं के आ ग्रंथ बनाववाथी प्रास्तिको ने प्रास्तिक्य गुण नो विस्तार थयो अने जे नास्तिको छे तेमनो नास्तिक्य गुण दूर थयो. माटे बन्ने ने आनंद थयो अने तेथी मारो सर्व प्रयत्न सफल थयों.

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