________________
( ३८४ ) मूलम्:चिरं विचारं परिचिन्वताऽमु,यन्न्यूनमन्यूनमवादि वादतः । कदाग्रहाद्वाभ्रमसम्भ्रमाभ्याम्,तन्मेमृषादुष्कृतमस्तुवस्तुतः।११ गाथार्थ:-श्रा विचार ने दीर्घ काल पर्यंत संग्रह करता माराथी वादथी, हठवाद थी अथवा भ्रम अने संभ्रम थी जे कई अोछं वधारे को होय ते मारू दुष्कत तत्त्व थी मिथ्या थारो. विवेचन:-अहियां नथकार श्री पोतानी पाप भीरूता बतावे छे के जगत मां अनेक प्रकार नां पापो मां जिनेश्वर देवे बतावेल तत्त्वो थी विरुद्ध वोलq ते उत्सूत्र प्ररूपणा कहेवाय छे. ते उत्सूत्र प्ररूपणा रूप पाप वधारे भयंकर छे. बीजां पापो थी पाप करनार एकज डुबे छे परन्तु उत्सूत्र बोलनार अनेक ने डूबाड़े छे माटे या ग्रंथ रचतां क्यांय पण शास्त्र विरूद्ध न कहेवाई जाय तेथी ग्रंथकार श्री कहे छे के पा नथ बनावतां लांबा समय पर्यंत माराथी वादना कारण थी, कदाग्रह थी अथवा मति ना संभ्रम थी विगेरे कोई पण कारणो थी जे कई शास्त्र विरुद्ध अोछ वधारे कांहोय ते मारूं पाप मिथ्या थालो.