Book Title: Jain Tattva Sar Sangraha Satik
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Ranjanvijayji Jain Pustakalay

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Page 393
________________ ( ३८२ ) नाथार्थ:छे. शासन करे ते :- अल्प बुद्धि वालाओ माटे माटे मारू या शास्त्र शास्त्र शास्त्र शब्द नी व्युत्पत्ति थी अल्प बुद्धि वाला ना संबंध थी मारू या कथन पण शास्त्र छे. उक्ति, प्रयुक्ति ने नियुक्ति युक्त प्रश्नोत्तर पूर्वक कथन ने शास्त्र - प्रवीणो शास्त्र कहे छे. विवेचनः - सुगम. मूलम् : यद्वास्तिपूर्वेष्वखिलोऽपि वरर्गा- नुयोग एतन्न्यगदन्विदांवराः । इयं तदावर्णपरम्पराऽपि तत्राऽस्ति तच्छास्त्रमिदं भवत्वपि || गाथार्थः - अथवा पंडित प्रवरो चौद पूर्वी मां सर्व पण अक्षरो नुं अनुयोजन करे छे, तो मारी पण या कहेली वर्ण परंपरा छे तेथी मारू कथन परण शास्त्र छे. विवेचनः - अनंत ज्ञानी जिनेश्वर देवो मुख थी उपन्नेइवा, विगमेइवा ने धुव्वेइया ए त्ररण पदो सांभली गणधर भगवंतो प्राचारांग, सूय गडांग, ठाणांग, समवायांग, भगवतीजी, ज्ञाता धर्मकथा, उपासक दशांग प्रांतगड़सूत्र, अनुत्तरोपपातिक, प्रश्न व्याकरण, विपाक सूत्र ने दृष्टिवाद एम बार अंगोनी रचना करे छे. ए दृष्टिवाद मां पूर्व नामनो एक विभाग छे. तेमां चौद पूर्वो बतावेल छे. ए चौद पूर्वो मां सर्व अक्षरो ना सर्व संयोगो थता होय तेटला अक्षरो

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