________________
(३७६) दृष्टिए विचारी ने जे-जे प्रश्नो तेरणे पूछया तेना ऊपर मुजब में उत्तरो आप्या. मूलम्:यथा यथा तेन हृदुत्थतर्क-माश्रित्य पृच्छाः सहसाऽक्रियन्त । तथा तदुक्तं पुरतो निधाय, मया व्यतार्युत्तरमाहतेन ॥४॥ गाथार्थ:--हृदय मां उत्पन्न थयेल तर्क ने प्राश्रयी ने तेरो जेम जेम साहस पूर्वक प्रश्नो कर्या ते रीते तेनुं कथन आगल राखी ने जैन आगम द्वारा में उत्तरो पाप्या. विवेचन:- तेना हृदय मां जे-जे तर्को उत्पन्न थया ते ते तर्को ने आश्रयी ने तेणे साहस पूर्वक जे जे प्रश्नो कर्या ते मुजब तेनुं कथन पागल राखी जैन आगम ना सिद्धान्त मुजब में उत्तरो आप्या छे. परन्तु मारी मति-कल्पना थी उत्तर प्राप्या नथी, एम सूचन थाय छे.
मया त्विदं केवललौकिकोक्ति-प्रसिद्धमाधीयत पष्टशासनम् । पुराणशास्त्राहितबुद्धयस्तु, पुरातनों युक्तिमिहाद्रियन्ताम् ॥५॥ गाथार्थः-प्रश्नोत्तर पद्धति केवल सांसारिक कथन मुजब में करेली छे परन्तु प्राचीन शास्त्राभ्यास थी प्राप्त थयेल बुद्धि वालाप्रो तो मारा विचार मां प्राचीन युक्ति ने घटावे छे.