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विवेचना-हवे ग्रंथकार श्री ग्रंथ बनाववानुं कारण बतावे छे के जैन तत्त्वो नुं विवरण प्राचीन मुनिग्रोए ग्रथो मां घणुंज विस्तार थी प्राप्युं छे परन्तु काल ना प्रभावे अल्प बुद्धि वाला आज ना तत्त्व जिज्ञासुओ नी बुद्धि तत्त्वो ना अर्थ समझवा मां समर्थ थती नथी. एटले अल्प बुद्धि वाला जीवो सहेलाई थी तत्त्वो समझी शके माटे तथा बीजारो नी प्रेरणा ना वश थी अज्ञानी एवा में धृष्टता करीने पण बीजापोए पूछेला प्रा थोड़ा प्रश्नो ना उत्तरो विस्तार पूर्वक आपेला छे. मूलम्:शेवेनकेनाऽपिचजीवकर्मणी, प्राश्रित्यपृच्छाःप्रसभादिमाःकृताः माभूज्जिनाधीशमतावहेले-त्यवेत्यमङ क्षुत्तरितमयैवम् ॥३॥ गाथार्थ - कोई शैवानुयायीए हठ थी जीव अने कर्म संबंधी या प्रश्नो करेला तेथी जिनेश्वर देव ना सिद्धान्त नी अवहेलना न थाय ए प्रमाणे विचारी ने में उक्त रीतिए जल्दी उत्तर प्राप्या. विवेचन-ग्रंथ रचना नो प्रसंग केम उपस्थित थयो ते बतावतां कहे छे के एक समये कोई शिव मत ने माननार आवी ने जीव अनेकर्म संबंधी प्रश्नो पूछवा लाग्यो. त्यारे जिनेश्वर देव ना सिद्धान्त नी अवहेलना न थाय ते