Book Title: Jain Tattva Sar Sangraha Satik
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Ranjanvijayji Jain Pustakalay

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Page 387
________________ ( ३७६) जोवा योग्य हतुं ते जाणी अने जोई लीवू. पछी सिद्धत्व अवस्था मां नवं कई पण जाणता नथी अने जोता पण नथी. कारण के सर्व भूतकाल, वर्तमान काल अने भविष्य काल ना भावो केवल ज्ञान नी प्राप्ति समयेज ज्ञान अने दर्शन थी जाणी अने जोई ले छे. मूलम्:क्रिये इमे द्वे युगपत्समास्तां, ये ज्ञे यदृश्ये इह ते अभूताम् । ततोनृजातौकिलसक्रियत्व-मभूत्तुसिद्धौखलुनिष्क्रियत्वम् ।३८ गाथार्थ:-ज्ञान-दर्शन संबंधी ए बे क्रिया एकज समये थाय छे, कारण के मनुष्य भव मां आ बे क्रियानो होय छे, एटले मनुष्य जन्म मांज बे क्रिया पणुं छे अने सिद्ध अवस्था मां निष्क्रिय पणुं जणावं. विवेचनः-सुगम. नूलम्एवं तु निष्क्रियता प्रसिद्धा, सिद्धषु सिद्धाऽस्त्यव धारणेन । सर्वस्यचैतस्यमनोनिरोधो,हेतुस्ततोऽनौवरमध्वमध्वनि ॥३९। गाथार्थः-या रीते सिद्धो मां निष्क्रियता निश्चय पूर्वक प्रसिद्ध रीते सिद्ध थई. ए सर्व नुं कारण मनोनिरोध छे माठे एज मार्ग मां रमण करो.

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