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स तावतेहाऽस्तिशरीरधारी,सूक्ष्मक्रियातोऽपिननिष्क्रियोयत् । यावद्यदासूक्ष्मक्रियाऽपिनष्टा,मुक्तस्तदासिद्धयति सिद्धताप्तेः ।३५
गाथार्थः-ते योगी ज्यां सुधी पा संसार मां शरीर धारी होय छे त्यारे सूक्ष्म क्रिया होय छे, एटले निष्क्रिय होतो नथी. ज्यारे सूक्ष्म क्रिया नाश पामेली होय छे त्यारे ते कर्म थी मुक्त थयेल मनाय छे. विवेचनः प्रा योगी पुरुष ज्यां सुधी शरीर धारी होय छे त्यां सुधी सूक्ष्म क्रिया जीव ने होय छे एटले सूक्ष्म मन, सूक्ष्म वचन अने सूक्ष्म काय योग होवा थी सूक्ष्म क्रिया होय छे. एटले ते निष्क्रिय होतो नथी. ज्यारे तेनी सूक्ष्म क्रिया पण नाश पामे छे त्यारे ते कर्म थी मुक्त थाय छे.
सिद्धि मां निष्क्रियता:मूलम्:विद्वन्! विमर्शःक्रियतामयंक्रिया-वन्तोऽथवानिष्क्रियकाश्चसिद्धाः
चेन्निष्क्रियाज्ञानजदर्शनोत्थ-क्रियाऽक्रियेष्वेषुकथंनसिध्येत् ?।३६ गाथार्श.-हे विद्वान् ! तारा मन मां प्रा विचार कराय छे के सिद्ध ना जीवो क्रिया वाला के क्रिया रहित छे ? ते ो जो निष्क्रिय होय तो सिद्धो मां ज्ञान अने दर्शन थी उत्पन्न थयेल क्रिया केम सिद्ध न थाय ?