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विवेचन:-हे विद्वान्! तारा मन मां आवो प्रश्न उपस्थित थाय छे के सिद्ध ना जीवो क्रिया वाला छे के क्रिया वगर ना छे ? तेना उत्तर मां जणाववानं के सिद्ध ना जीवो निष्क्रिय एटले क्रिया रहित छे. जो तेश्रो क्रिया रहित होय तो ज्ञान अने दर्शन थी उत्पन्न थती क्रिया थी क्रिया वाला केम सिद्ध न थाय ? चूलम्:सत्यं मुने! ज्ञानजदर्शनोद्भवा,सैषा क्रियासिद्धिगतेषुनास्ति । कथं यतःसैषुयदातुलोके,कवल्यलब्धिःसमभूत्तदानीम् ॥३७॥ गाथार्थ:-हे मुनि ! तारो प्रश्न बराबर छ परन्तु ज्ञानदर्शन थी उत्पन्न थयेली क्रिया सिद्ध थयेल आत्मानो ने होती नथी. केम नथी होती ? तो जणाववान के ज्यारे तेमने केवल ज्ञान थयुं ते प्रसंगे ते क्रिया हती ? विवेचन:-हे मुनि! तें ठीक प्रश्न कर्यो छे. तेना उत्तर मां जणाववान के सिद्ध थया बाद ज्ञान अने दर्शन थी उत्पन्न थयेल क्रिया तेमने होती नथी. तो प्रश्न थाय छे के सिद्धो ने पण केवल ज्ञान अने केवल दर्शन नी क्रिया नों सद्भाव होवा थी तेमने क्रिया केम न होय ? अर्थात् निष्क्रिय केम रह्या छ ? तेना उत्तर मां जणाववानुं के ज्यारे जीव ने केवल ज्ञान थाय छे ते समये जे जाणवा योग्य छे अने