Book Title: Jain Tattva Sar Sangraha Satik
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Ranjanvijayji Jain Pustakalay

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Page 376
________________ । ३६५ ) धारी आत्मा जेम अग्नि द्वारा लाकडां बालवामां आवे छे तेम ध्यान रूप अग्नि द्वारा बधा कर्मो रूपी लाकडां बली जवाथी आ पात्मा पोताना शुद्ध स्वरूप ने पामे छे, एटले निर्मल अने निर्लेप थाय छे. मूलम्:इतीयता सिद्ध मिदं विदन्तो! यदात्मबोधान्न परोऽस्तिसिद्धये । हेतुस्ततोऽवयतध्वमध्वनि,येनाऽऽत्मनःस्थानमहोमहोदये ।२२ गाथार्थ:- हे विद्वानो! आटला थी ए सिद्ध थयं के आत्म ज्ञान विना सिद्धि नी प्राप्ति माटे बीजो कोई हेतु नथी. माटे तमो पण एज मार्गे प्रयत्न करो जेथी मोक्ष मां आत्मा नुं स्थान थाय. विवेचन:- जो तमारे मोक्ष मां आत्मां नं स्थान मक्की करवं होय तो ऊपर नी बधी बाबतो विचारतां नक्की थाय छे के आत्मज्ञान विना मोक्ष माटे बोजो कोई मार्ग नथी. माटे तमारे पण मोक्ष मां जq होय तो आत्म ज्ञान मेलववा प्रयत्न करवो जोइये, जेथी तमारा आत्मा हैं मोक्ष मां स्थान थई जाय. मूलम् - मुनीश! साधूदित एष मुक्ते--र्गोि जिनेन्द्रागमयुक्तिमिद्धः । उत्सर्गनोत्सर्गहठाभिमुक्तः,श्रेयःश्रियेकेवलराजयोगात् ॥२३॥ मुक्ति नो सर्वदर्शनानुसारी मार्गः

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