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( ३६६ ) परहियःसर्वमतानुयायो, मार्गोऽस्ति मुक्तेद्तमात्मदृष्टयै । अध्यात्मविद्याधिगमैक हेतुः,समेनिवेद्यःसरलःश्रमविना ॥२४॥ गाथार्थ:-हे मुनीश, तमोए केवल राजयोग थी जिनेन्द्र ना आगम द्वारा तथा युक्ति द्वारा सिद्ध थयेल उत्सर्ग अने अपवाद रूप एकांत हठवाद रहित मोक्ष माटे मोक्ष नो मार्ग सारी रीते कह्यो छे, परन्तु जे मार्ग सरल, सर्व दर्शनानुकूल, श्रम विना जल्दी आत्म ज्ञान थाय अने अध्यात्म ज्ञान मेलववा माटे अद्वितीय कारण रूप होय एवो मोक्ष नो मार्ग बतावो. विवेचन:- हे मुनिवर, जोके तमोए मोक्ष-लक्ष्मी माटे मोक्ष नो जे मार्ग सारी रीते बताव्यो छे, के जे मार्ग केवल राजयोग थी मोक्ष मले तेवो छे. वली अनंत तीर्थकर भगवंतो ना आगम द्वारा अने अनेक प्रकार नी युक्ति प्रयुक्तिमोथी सिद्ध थयेल छे. तेमज तेमां उत्सर्ग अने अपवाद एम बन्ने प्रकार ना एकांत रूप हठवाद रहित स्याद्वाद मय छे. परन्तु जे मार्ग सरल होय, सर्व दर्शनानुकूल होय एटले सर्व धर्मवालानो ने अनुकूल होय अने श्रम विना जल्दी आत्म ज्ञान थाय अने अध्यात्म ज्ञान मेलववा माठे अद्वितीय कारण रूप होय एवो मोक्ष नो मार्ग मने बतावो.