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विवेचनः हवे ग्रंथकार श्री मोक्ष ना मार्ग नुं वर्णन करे छे के मोक्षाभिलाषी मनुष्ये पहेलां पोताना हृदय मां ए विचार करवो जोइये के प्रा आत्मा वास्तविक रीते तो शुद्ध एटले निर्मल, ज्ञानी, मुक्त एटले दुःख रहित ने निर्लेप छे एम योगी पुरुषोए कहेलुं छे. जो आत्मा शुद्ध, बुद्ध, मुक्त अने निर्लेप होय तो कया साधन थी अने कया कारण थी बंधन पामेलो छे ? त्यारे विचार करतां जणाय छे के आत्मा भ्रम, थी बंधायेलो छे. महात्मा पुरुषो ने भ्रम कर्म, मोह भ्रम अविद्या, कर्त्ता, माया, गुण, दैव, मिथ्या अने अज्ञान विगेरे शब्दो थी जरणावे छे. तत्त्वज्ञानी एवा योगी पुरुषो कर्मादि शब्दो ने भ्रम कहे अने आ भ्रम वड़े आत्मा बंधायेलो छे. मूलम्
भ्रमोऽत्र मिथ्यानिजकल्पनोत्थितो, येनैवबद्धोनलिनीशुकोयथा । बद्धःपुनर्मर्कटकोऽपितद्वत्, तथैष आत्मा भ्रमतोनिबद्धः ॥३०॥ गाथार्थः - प्रा संसार मां मिथ्या पोतानी कल्पना थी भ्रम पैदा थाय छे, जेना वश थी श्रा जीव नलिनी शुक तथा वांदरा नी माफक बंधन पामेलो छे.
विवेचन :- झूठी ग्रेवी पोतानी कल्पना मांथी भ्रम पैदा थाय छे. एवा प्रकार नो भ्रमं एटले मिथ्याज्ञान. मिथ्या ज्ञान थी अनात्मीय वस्तु मां आत्मीय वस्तु मनाय छे.