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गाथार्थः प्रज्ञान थी उत्पन्न थयेल अनंत काल नुं दुःख श्रात्म ज्ञान थी रोकवा योग्य छे, कारण के आत्म बोध विना अनेक प्रकार ना कष्ट थो साध्य व्यवहारो वड़े पण रोकवा योग्य नथी.
विवेचनः- ग्रहियां ग्रात्म बोध नुं केटलुं महत्त्व छे ते जणावे छे. अज्ञानता ना कारणे उत्पन्न थयेल अनंत काल सुधी भोगवाय एवं दुःख अनेक प्रकार ना कष्ट सहन करवा पूर्वक नी प्रवृत्तिोथी आत्म ज्ञान विना रोकी शकाय नथी. तेज दुःख प्रात्म ज्ञान थी जरूर रोकी शकाय छे.
मूलम्:
चिद्र प श्रात्मायमधिष्ठितस्तनुं कर्मानुभावादसकौ शरीरी । ध्यानाग्निनिदग्ध समस्त कर्मा, स्याच्छुद्धश्रात्मातुतदा निरञ्जनः गाथार्थ:- कर्म ना प्रभाव थी ज्ञान मय एवो आ आत्मा शरीर मां रहेलो छे अने तेथी ते शरीरी कहेवाय छे. ध्यान रूप अग्नि थी समस्त कर्मो बली जवाथी आ ग्रात्मा शुद्ध थाय ने निर्लेप थाय छे.
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विवेचन :- प्रा आत्मा शरीर धारी केम छे अने शुद्ध केम थाय छे ते बतावतां जणावे छे के कार्मण नामना शरीर ना योगे एटले कर्म ना प्रभावे श्र आत्मा शरीर मां रहे छे अने तेथी तेनी शरीरी एवी संज्ञा आपवामां आवे छे. ए शरीर