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( ३६० ) विवेचन:-आत्मा मां थीज अध्यात्म योग प्रगट थयो छे तेज वात ने समझावे छे के पोताना आत्म थी, समता भाव थी, राग-द्वेष नो नाश थवाथी, तेवा प्रकार ना अपूर्व प्रात्म लाभ थी अने जगत नां बधां द्रव्यां नो यथार्थ दर्शन थी
आत्मा मांज जे ज्ञान थाय छे तेनेज अध्यात्म योग कहे छे. एटले ते कोई नी अपेक्षा विना स्वयं सिद्ध थयेलो छे. मूलम्:एवंहियश्चाऽऽत्मभवात्मबोध-स्तस्मान्नृणांजायत एवमुक्तिः । अस्यानहेतुस्त्वपरोऽस्तिविष्णु-मुख्यस्तदात्माऽवगमस्पृहैष्या।१४ गाथार्थः-ए प्रमाणे आत्मा थी उत्पन्न थयेल आत्म ज्ञान थीज मुक्ति थाय छे. तेना विष्णु विगेरे बीजा कोई हेतु भूत नथी, तेथी आत्म ज्ञान नी अभिलाषा करवी जोइये. विवेचनः-एटले आटलो निर्णय दृढ थाय छे के आत्मा मां थीज आत्म ज्ञान उत्पन्न थाय छे अने आत्म ज्ञान थीज मुक्ति थाय छे. ते आत्मज्ञान नी प्राप्ति मां विष्णु आदि बीजा कोई हेतु रूप नथी. माटे आत्मज्ञान मेलववा माटे तेनी अभिलाषा अवश्य करवी जोइये. मूलम्ये तु स्वभावाग्निगदन्ति मुक्ति,तत्राऽप्यसावेव निवेदितोऽर्थः । स्वस्यात्मनोभावहाप्तिरक्ता,तदात्मलाभान्ननुसिद्धिलक्ष्मीः