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माटे थाय छे. तेवीज रीते कोई शुद्ध एवा सिद्ध पुरुष ने अथवा कोई त्यागी एवा साधु भगवंत ने थोडुंपणापेल सर्व सिद्धि करनार थाय छे. तथा आ लोक अने परलोक ना सुख नुं कारण रूप अने संसार ना नाश ना हेतु भूत थाय छे. मूलम्:जनेऽपि कस्मैचिदनुत्तराय, क्षत्रादये स्तोकमपि प्रदत्तम् । वारे क्वचित्केनचिदेकवेलं, तस्येष्टसिद्धय भवतीह नूनम् ।१६ यावत्त्वयं जीवति तावदस्य, स राजपुत्रः सकलार्थकारी । धनं हिकिदुष्टविपक्षजाता-न्मृत्यन्तकष्टादपिपात्यशङ्कम् ।१७ गाथार्थः-कोइक मनुष्ये कोइक अवसरे एक वार एक सारा क्षत्रिय ने थोडं पण आपेलं संसार मां निश्चये तेनो इष्ट सिद्धि माटे थाय छे. आ दाता ज्यां सुधी जीवे छे त्यां सुधी ते राज-पुत्र तेना सकल अर्थ ने करनार छे. घj शुं कहिये ? ते राजपुत्र दुष्ट शत्रु ना समूह थी अने मरगान्त क्लेश थी निस्संदेह रक्षण करे छे. विवेचनः-उत्तम पुरुष ने आपेलं आ भव मां पण केटलं फलदायी थाय छे ते जणावे छे के कोई मनुष्ये अवसरे एक वार पण कोई उत्तम एवा क्षत्रिय पुत्र-राजपुत्र ने थोडं पण प्राप्यं होय तो निश्चे आ संसार मां दान देनार ने इष्ट सिद्धि माटें थाय छे. राजपुत्र पोताना वस्तु दाता जे मनुष्य छ तेनुं