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पामे छे, ए रीत तत्त्व थी अजाण मनुष्यो ना भगवान ना नाम स्मरण थी पाप नाश पामे छे.. विवेचन:-योगिरो भगवान ना स्वरूप ने जाणता नथो अने भगवान निरागी अने निस्पृह छ तो केवल भगवान ना नाम स्मरण थी योगियो ने केम तेमन कार्य सिद्ध थाय ? तेना जवाब मां लखवानुं के जेम सर्प न झेर चडवाथी मूर्छा पामेल एवानो झेर उतारवाना मंत्र थी अजाण होवा छतां पण एवा प्राणीमो नुं गारुडी मंत्र, हंस मंत्र अने जांगुली मंत्र नो जाप सांभलवाथी पण झेर नाश पामे छे, तेम तत्त्व ना अजाण एवापो नुं पाप भगवान ना स्मरण थी नाश पामे छे.
तथाऽस्थिभक्षीति हुमायपक्षी, प्रसिद्धिमानसन्ततजीवरक्षी । उड्डीयमानस्य यदस्य छाया, यन्मूर्द्ध गासोऽत्रभवेन्नरेन्द्रः ।२५ नाऽयं खगो वेत्ति यदस्य शीर्षे, छायां करोतीति तथेतरोऽपि । जानाति नैवं मम मस्तकेऽसौ,छायां करोतीतिमतंद्वयोन ।३६ तथाऽपि तच्छायमहात्मतोदया-दधीशतोदेति दरिद्रतापहा । अजानतोरप्यथ सिद्धिरेवं,कथं स्मतेर्यातिनपापमोशितुः ।२७ गाथार्थः-तेवीज रीते हुमायु नाम नुं पक्षी अग्नि भक्षण करनार तरीके प्रसिद्ध छे, तो पण हमेशां जीव रक्षण