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( ३५२) अस्यां हि सत्यां स्थितिरक्षयास्याद्,अनन्तविज्ञानमनन्तदृष्टिः । एकस्वभावत्वमनन्तवीर्य,जागत्ति सज्ज्योतिरनन्तसौख्यम् ।२६ गाथार्थः-पाप नाश पाम्ये छते सर्व प्रकार नी आत्म शुद्धि, प्रात्म शुद्धि थये छते परमात्मा नुं ज्ञान, परमात्मा ना ज्ञान थी कर्म बंध नो नाश अने कर्म नाश थी मोक्ष लक्ष्मी एटले अक्षय स्थिति , अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, एक स्वभाव पणुं, अनंत वीर्य, सज्ज्योति अने अनंत सुख थाय छे. विवेचनः-पाप नाश थाय त्यारे केटला प्रकार नां आत्मा ने फल मले छे ते बतावे छे. ज्यारे पाप नो नाश थाय छे त्यारे प्रात्मा निर्मल बने छे. आत्मा निर्मल थवाथी जिनेश्वर देव आदि नी अोलखाण थाय छे. जिनेश्वर देव आदि नी अोलखाण थी कर्मबंध सरके छे. कर्म ना नाश थी मोक्ष नी प्राप्ति थाय छे. मोक्ष नी प्राप्ति थवाथी आत्मा नी अक्षय स्थिति थाय छे, एटले आदि अनंत काल त्यां रहेवानुं थाय छे. ए जीव क्यारे पण संसार मां आवतो नथी अने ते वखते आत्मा अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, एक स्वभाव पj, अनंत वीर्य गुणना प्रकाश मय · सज्ज्योति अने अनंत सुखो नो भोक्ता बने छे.