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( ३५६ ) गाथार्थः-या रीते सर्वे पण विष्णु विगेरे शब्दो थी आ आत्मा ज जाणवो, ते कारण थी आत्मज्ञान थी या मुक्ति केम न थाय ? आ तत्व विष्णुवादी आदिग्रोए पण विचार जोइये. विवेचन:-आ रीते विष्णु, ब्रह्मा, शिव अने शक्ति विगेरे सर्वे शब्दो नो अर्थ आत्माज थाय छे अने विष्णु आदि नी उपासना करनार आत्मानीज उपासना करे छे, तो आत्म ज्ञान थी मुक्ति केम न थाय ? माटे विष्णु वादी विगेरे ! तमारे हृदय मां विचार करवो जोइये. मूलम्चेन्नेतिविष्णुप्रमुखेभ्यएभ्यः, मुक्तिस्तदावैष्णवमुख्यलोकाः । सन्तोगृहस्थाइह विष्णुमुख्यान,एवाऽर्चयन्तःपरितोजपन्तु ॥७॥ परं तपः संयमयुक्तता क्षमा, निः सङ्गता रागरुषापनोदौ । पञ्चेन्द्रियारणांविषयाद्विरागो,ध्यानात्मबोधादिविधीयतेकथं?। गाथार्थ:- जो मारू कथन बराबर नथी अने विष्णु प्रमुख थी मुक्ति थती होय तो वैष्णव प्रमुख जनो, संतो अने गृहस्थो आ संसार मां तेमने पूजतां छतां सर्व प्रकारे तेमनोज जाप जपे परन्तु तपश्चर्या, संयम मां तत्परता, क्षमा, निसंगता, राग-द्वेष न निवारण, विषयो नो विराग तथा ध्यान अने आत्मज्ञानादि तेत्रो केम करे ?