Book Title: Jain Tattva Sar Sangraha Satik
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Ranjanvijayji Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 360
________________ ( ३४६ ) प्रा संसार मां जे महात्मा योगी पुरुषो छ तेत्रो द्रव्य परिग्रह विनाज शोभे छे. तेमना माटे भगवान ना नामनो जापज योग्य छे, कारण के तेमना प्रयोजन नी सिद्धि भगवान ना जापथीज थाय छे. विवेचन:-हे साधु पुरुष, तें आ बराबर कह्य छ, अर्थात् तारो प्रश्न बराबर छे. महापुरुषोए या बाबत अहियां विवेक करेलो छे, कारण के अहियां जे वात कहेवामां आवी छे ते अधिकार भेद थी कहेवाई छे, अर्थात् जे गृहस्थो द्रव्य परिग्रह वाला छे अने शक्तिशाली छ तेत्रो द्रव्य थी पण पूजा करी शके छे अने भाव थी पण पूजा करी शके छे. कारण के तेत्रो द्रव्य अने भाव पूजा ना अधिकारी छे परन्तु जे महात्मा पुरुषो संसार ना त्यागी छे अने योग नो अभ्यास करनार छ तेत्रो द्रव्य परिग्रह विनाज शोभे छे. तेयो द्रव्य पूजा करी शकता नथी. एवा योगी पुरुषो माटे भगवान नो जापज योग्य छे. तेमनी स्वार्थ सिद्धि भगवान ना जाप थीज थाय छे. मलम् - यथाविषंगारुडहंसजाङ्गली-मन्त्रस्यजापाच्छवरणाच्चदेहिनाम् । मूर्छावतांतत्वमजानतामपि,विनश्यतोत्थंभगवत्स्मृतेन घम्।२४ गाथार्थः जेम गारुडी, हंस अने जांगली संबंधी मंत्र ना जाप थी अने सांभलवायी मूच्छित प्राणिोना झेर नाश

Loading...

Page Navigation
1 ... 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402