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( ३४७ ) मनुष्यो ना भोग ना माटे अनुक्रमे स्त्री समूह युक्त शालिभद्र अने चोर नी जेम थाय छे. विवेचन:-उग्रतम पूण्य तथा उग्रतम पाप पोताना माटे फलदायिक थाय छे तेमां कइंक पण आश्चर्य नथी, परन्तु बीजा अनेक मनुष्यो ना भोग ने माटे अथवा दुःख ने माटे थाय छे ते बतावतां कहे छे-जेम शालिभद्र पूर्व जन्म मां गोवालिया ना भव मां मासक्षमण ना तपस्वी ने क्षीर ना दान द्वारा जे उग्रतम पुण्य उपार्जन कयु ते तेमनी स्त्रियो ना समूह - भोग माटे पण थयुं अने चोरे जे उग्रतम पाप कर्यु ते तेमनी स्त्रियो ना नाश माटे पण थयु. तेम उग्रतम पुण्य अने पाप कोइये कयु होय तो बीजा अनेक ना भोग माटे पण थाय छे. मूलम्यथैककः कश्चन राजसेवां, कृत्वा सुखी स्यात्परिवारयुक्तः । एकस्तथाकोऽपिनृपाऽपराधी,निहन्यतेऽसौसपरिच्छदोऽपि ।२० गाथार्थः-जेम कोई मनुष्य राज सेवा करीने परिवार सहित सुखी थाय छे, तथा कोई एक मनुष्य राजा नो अपराधी थवाथी पोताना परिवार सहित हणाय छे. विवेचन- सुगम.