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नूलम:अनेकधोत्पन्नमनेकशो यथो-पभुज्यमानं बहुकालमात्रम् । न क्षीयते पुण्यफलं तदेतत्, प्रायोऽन्यजन्मन्युदयं समेति॥१३॥ गाथार्थ:- घणा प्रकार ना परिश्रम थी उत्पन्न थयेल, अनेक वार भोगवातुं अने बहु काल वालुं पुण्य फल नाश नथी पामतुं परन्तु परलोक मां उदय आवे छे. विवेचन:-जेम अनेक प्रकार ना परिश्रम थी उत्पन्न थयेल वस्तु लांबा काल सुधी अने वारंवार भोगववा छतां नाश पामती नथी तेम प्रा विशाल पुण्य फल अनेक प्रकार ना परिश्रम थी उत्पन्न थयेल छे, अने वारंवार भोगववा छतां नाश न पामे तेवं छे, अने लांबो काल चाले तेवं छे. तेथी आ जन्म मां नाश पामतुं नथी, परन्तु पर भव मां उदय मां आवे छे. मूलमः तथा च यत् किञ्चिदुदुग्रपुण्यं, साक्षादिहैवायति फलानि । यथाहिदिव्येपरिशुद्धयतिक्षणाद्,यःकश्चिदत्राऽस्तिजनेषुसूनती१४ गाथार्थ:-तेमज कोई उग्र पुण्य प्रा संसार मां प्रत्यक्ष फल आपे छे, जेम आ संसार मां मनुष्यो नी अंदर कोई सत्यवादी कठिन परीक्षा मां शुद्ध थाय छे.. विवेचनः पुण्य-पुण्य मां पण तफावत होय छे. कोई पुण्य लांबा काले फल आपे तेवं होय छे, तो कोई पुण्य