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( ३४२ ) गाथार्थ:-जेथी मनुष्य आयुष्य घणुं तुच्छ छे, मनुष्य नुं आ शरीर नाशवंत छे, भोगवातुं एवं पुण्य फल मरण वच मां प्रावतां टूटी जाय छे, परन्तु आ विशाल पुण्य लांबा काले भोगवाय छे. विवेचन:-जो पुण्य फल मनुष्य भवमांज भोगवातुं होय तो ते पुण्य फल लांबा काल वालुं होवा थी अने मनुष्य भव तुच्छ अने नाशवंत होवा थी ते पुण्य फल नाश पामी जाय छे. माटे आ विशाल पुण्य फल लांबा काले देवलोक मांज भोगवाय छे. चूलन:सुखान्तरा दुःखभवोमहीयो-दुःखाय यत्स्यादतिभीतिदा मतिः। सापुण्यजेऽस्मिन्सतिनवयुक्ता,तदन्यजन्मेफलमेतदेति भोः।१२। गाथार्थ:--सुख मध्ये दुःख नी उत्पत्ति मोटा क्लेश माटे थाय छे. जेथी मरण अत्यन्त भय देनार छे. पुण्य काल ना भोग काल मां मृत्यु योग्य नथी अने परभव मां पा फल मले छे. विवेचन:-सुख ना समय मां थोडं पण दुःख घणा क्लेश माटे थाय छे. वली मृत्यु नुं दुःख तो अत्यन्त भय देनार छे. श्रा पुण्य फल नो काल सुख नो काल छे. माटे आ पुण्य फल ना सुख ना काल मां मृत्यु योग्य नथी तेथी पर भव मांज विशाल पुण्य - फल मले छे.