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गाथार्थ:- मनुष्य भव अल्प काल होवाथी ए पदार्थो नुं तुच्छ फल मले छे. तेथी मनुष्य जन्म मांज तेमने तुच्छ फल मले परन्तु परलोक मां फल न मले. विवेचन- चिन्तामणि रत्न आदि पदार्थो आ भव तुच्छ फल आपनारा छे. वली ते अल्प काल सुधी फल आपनारा छे. मनुष्य जन्म पण अल्प काल वालो छे तेथी चिन्तामणि रत्न आदि पदार्थो नुं अल्प कालीन अने तुच्छ फल मनुष्य जन्म मांज फले छे. तेमनुं फल परलोक मां मलतुं नथी.
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इदं सुहृत् ! पुण्यभवं फलंतु, महत्ततःस्याबहुकालभुक्त्यै । प्रभूतकालस्तु विना भवान्तरं,देवादिसम्बन्धिन वर्तते यतः ।। गाथार्थ:-हे मित्र, आ पुण्य थी उत्पन्न थयेल पुण्य मोटुं होय छे, तेथी लांबा काल सुधी भोगवाय छे. अने लांबो काल देवादि संबंधी भवांतर विना संभवतो नथी. विवेचन:- जे वस्तु नं फल घj मलवान होय अने लांबा काल सुधी चाले तेवू होय तो एवं फल भोगववा माटे लांबा काल वालो अने सारो भव जोइये. मनुष्य भव लांबा काल वालो नथी अने एकदम पुण्य भोगववा माठे सारो भव परण नथी. ते वस्तु समझाववा माटे कहे छे के हे