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( ३४१ ) मित्र, आ पुण्य थी उत्पन्न थयेलुं फल घणुं मोटुं होय छे अने लांबा काल सुधी भोगवाय ते, होवाथी ते माटे मनुष्य भव उपयोगी बनतो नथी. आवो सारो अने लांबो काल देव भव सिवाय भवांतर मां नथी.
मूलम्:तत्पुण्यलम्यं फलमेंतदस्ति, प्रायोऽन्यजन्मान्तरयातजन्तोः । यद्यत्र जन्मन्युपयाति पुण्य-फलं तदा मड्क्षु विनाशमेव ॥१०॥ गाथार्थ:-ते पुण्य संबंधी फल प्रायः अन्य जन्म मां जता जीव ने होय छे, जो ते पुण्य नुं फल मनुष्य जन्म मांज प्राप्त थाय तो जल्दी नाश पामी जाय. विवेचन:-ते पुण्य संबंधी फल मोटु तथा लांबा काल सुधी भोगवाय तेवू होवाथी जे प्राणी बीजा भव मां जाय छे तेनी साथे परलोक मां जाय छे. जो मनुष्य भवमांज ते पुण्य फल प्राप्त थतुं होय तो ते भव अल्प काल वालो होवा थी वचमांज तरतज पुण्य फल नाश पामी जाय, माटे ते पुण्य नुं फल परलोक मां भोगवाय छे. मूलम्यतो मनुष्यापुरतीव तुच्छं, मानुष्यकं देहमिदं शरारु। तभुज्यमानमरणान्तरागमात्,सन्युट्यतीदंपृथुपुण्यजंफलम्॥११॥