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( ३३८ ) गाथार्थ:-श्रा संसार मां सिद्ध थतो पारो पण काले सिद्ध थयेलो फल आपे छे, परन्तु सिद्ध थता काल मां फल आपनार थतो नथी. तेवीज रीते देश अने व्यवहार सम्बन्धी कार्य पण कालेज अत्यन्त फलदायी थाय छे. विवेचन:- आ संसार मां औषधि आदि थी पारो सिद्ध करवामां आवे छे-ते पारो सिद्ध थाय ते कालेज फलदायी थाय छे. हजु सिद्ध न थयो होय ते काल मां फल देनार थतो नथी-तेवीज रीते देश संबंधी कार्यों अने व्यवहार संबंधी कार्यो बराबर काल परिपाक थयेज अत्यन्त फलदायी थाय छे. ते पहेलां फलदायी थता नथी.
तथैव पूजादिकमत्रपुण्यं, काले स्व एवाऽस्ति भवान्तराख्ये। फल प्रदायीतिततो न वक्ष-रौत्सुक्यमेष्यं फलदे पदार्थे ॥६॥ गाथार्थ:- तेवीज रीते आ संसार मां पूजादि धर्म कार्य अन्य भवे पोताना समये फलदायी थाय छे. तेथीज चतुर पुरुषोए फलदायिक वस्तु मां उतावल न करवी जोइये. विवेचनः-संसार मां पण शुभ अथवा अशुभ कार्यों न फल अवश्य मले छे, अने ते पण ते कालेज ते वस्तु अवश्य फले छे. माटे स्थिरता राखवी जोइये. ते बतावतां कहे छे के जेम शुभ अने अशुभ कार्यो नुं फल ते कालेज मले छे,