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( ३३७ )
मूलम्:
वनस्पतिर्वा समयेस्वकीये, सर्वः फलत्येष न चाऽऽत्मशैप्रयात् । सेवाऽपि राजत्रिदशेश्वरादि-सम्बन्धिनी वा फलतीहकाले ॥४॥ गाथार्थ - अथवा सर्व वनस्पतिम्रो पोताना समये फले छे परन्तु परणी उतावल थी फलती नथी. राजा अने इन्द्र संबंधी सेवा परण आ संसार मां पोताना समयेज फले छे.
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विवेचनः - व्यवहार मां कहेवत छे के उतावले प्रांबा न पाके एटले जे वस्तु जे काले फलवानी होय छे तेज काले फले छे. उतावल करवाथी जल्दी फल मलतुं नथी. तेम सर्व प्रकार नो वनस्पति परण जे काले फलवानी होय छे तेज काले फले छे परन्तु प्रापणी उतावल थी जल्दी फल आपती नथी. जेमके अमुक वनस्पतिम्रो बे-चार वर्ष मां फले छे, ज्यारे अमुक वनस्पति फलवामां पचास वर्ष पण लागे छे माटे कालेज वस्तु फले छे. राजादिनी तथा इन्द्रादिनी सेवा परण पोताना कालेज फले छे.
मूठम्:
संसाध्यमानोऽत्ररसोऽपिकाले, सिद्धः फलायाऽस्तिनसाध्यमानः । तथाऽन्यदेशव्यवहारकर्म, तत्कालपूत फलति प्रकामम् ॥५॥