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गाथार्थ:-हे साधु ! तमे आ सत्य का परन्तु जेम चिन्तामणि रत्न विगेरे पूजनारायो ने अहीं जल्दी फल मले छे. तेवीज रीते परमेश्वर संबंधी पूजायेली आ प्रतिमा अहियां फलती नथी. विवेचनः नास्तिक आस्तिक ने कहे छे के तमोए पूर्वे जे दृष्टांतो पाप्यां ते बराबर छ, परन्तु चिन्तामणि रत्न विगेरे पूजनार ने प्रा संसार मां शीघ्र प्रत्यक्ष फल मले छे अने आ भगवान संबंधी जे प्रतिमा छे ते पूजायेली छती चिन्तामणि रत्न नी जेम जल्दी फलती नथी. कारण के लोक स्वभाव तो. प्रत्यक्ष फल जोनार छे माठे प्रावो प्रश्न उपस्थित थाय छे.
सत्यं त्वदुक्तं परमत्र साधो! ,संस्थाप्य चेतःस्थिरमित्यवेहि। यद्वस्तुनोयोऽस्ति फलस्यकालस्तत्रेव तद्वस्तु फलत्यशङ्कम।।२।। गाथार्थ:-हे साधु ! तें अहियां कह्य ते सत्य छ परन्तु हृदय स्थिर करी ने तुं प्रा जो. जे वस्तु नो जे फल नो काल छे ते काले ते वस्तु निस्संदेह फले छे. .. विवेचन:-चिन्तामणि रत्न आदि नं प्रत्यक्ष अने शीघ्र आ भव मां तेना पूजन करनार ने फलदे खाय छे परन्तु भगवान नी प्रतिमा नुं फल आ भव मां जल्दी देखातुं नथी.