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विवेचन:-जेम चक्रवर्ती राजा नी स्तुति तथा निन्दा करनार मनुष्य सुखी अथवा दुःखी थाय छे, तेम भगवान नी पण पूजा तथा निन्दा करनार सुखी अथवा दुःखी थाय छे.
स्तुतेऽधिकंस्यानाहिसार्वभौमे,विनिन्दितेऽस्मिंस्तुनकिञ्चिदूनम् । नवं प्रभौपूजननिन्दनाभ्या-माधिक्यहानीस्तइमे तुकर्तुः॥१८॥ गाथार्थ:-जेम चक्रवर्ती नी कोई स्तुति करे तो तेने अधिक सुख थतुं नथी अने तेनी कोई निन्दा करे तो तेने हानि थती नथी. तेम परमेश्वर नी कोई पूजा करे के निन्दा करे तो परमेश्वर ने कई परण थतं नथी. करनार ने लाभ अथवा हानि थाय छे. विवेचन:-जेम कोई मनुष्य चक्रवर्ती राजा नी स्तुतिसेवा करे तो ते चक्रवर्ती ने कई पण लाभ थतो नथी. कोई मनु चक्रवर्ती नी निन्दा करे तो चक्रवर्ती ने कई नुकसान थतुं नथी, परन्तु स्तुति अने निन्दा करनार नेज लाभ तथा हानि थाय छे. तेम प्रभु नी पूजा-स्तुति आदि करवाथी प्रभु ने लाभ थतो नथी अने प्रभुनी कोई निन्दा करे तो प्रभु में हानि पण थती नथी. स्तुति अने निन्दा करनार नेज लाभ अथवा हानि थाय छे.