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गाथार्थ:- अलिप्त परमेश्वर ने सर्व पण पूजा अने निन्दा लागती नथी, परन्तु तेश्रोने जेवा प्रकार नुं कर्ये छते तेवा प्रकार, प्रा पोताना जीवने लागे छे. विवेचन:-भगवान नी पूजा के निन्दा करवायी भगवान ने कई पण फल मलतुं नथी कारण के तेरो तो वीतरागी होवाथी कोई पण प्रकार नी स्पृहा वगर ना छे, अने अलिप्त छे. माटे तमो भगवान नी पूजा करो या तो निन्दा करो परन्तु भगवान ने कई परण असर थती नथी. वास्तविक रीते तो निर्लेप एवा भगवान नी तमो पूजा करो तो पूजा - फल अने निन्दा करो तो निन्दा नुं फल तमारा जीवनेज लागे छे.
कुड्ये यथा वज्रमये नरेण, क्षिप्ता मरिगर्वा दृषदप्यथापरा । ते अपि क्षेपकमभ्युपेते,नजातुयातस्तमतीत्यकुत्रचित् ॥१५॥ गाथार्थ:-पाषाण नी भींत तरफ फैकेल मणि अथवा पत्थर ए बन्ने फेंकनार तरफ आवे छे, परन्तु जेना तरफ फैकवानुं छे तेना तरफ क्यांय जता नथी. विवेचन:-पाषाण नी भींत तरफ फैकेल माण अथवा पत्थर जे माणस फेंके छे तेना तरफ ते आवे छे, परन्तु भीत तरफ क्यांये जता नथी. तेवीज रीते भगवंत ने करेल